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कभी न सोचा कुछ अपने लिए , था जो सोचा वो सबके लिए ,कभी न चाहि ख़ुशी कोई अपने लिए जो थी मांगी ख़ुशी उस रब से वो थी सबके लिए , औरों की तरह सिर्फ अपने लिए जीने का कोई अरमान ना था ,जो था अरमान मेरी ज़िन्दगी का वो था सबके साथ रहने का ,पर मेरा नसीबा ही बड़ा बैमान निकला , मैंने तो सबके साथ ख़ुशी बांटने की चाहत की थी पर मुझे ही इस ज़िन्दगी में किसी का साथ ना मिला ,कसूर किसी का नहीं मेरे नसीब का है , इसी में लिखा था अकेले रहना , इसी में लिखा था तनहा जीना , जो था लिखा किस्मत की रेखा में आखिर नसीब से मुझे केवल ये ही तोहफा ही तो मिलना था आज ज़िन्दगी की इस जुस्तजू में मुझे वो ही मिला जो नसीबा ने चाहा था ,मुझे किसी का साथ नहीं बस ज़िन्दगी का खालीपन मिला, मुझे किसी का प्यार नहीं बस तनहाइयों का साथ मिला ,पर न शिकायत है किसी से और ना कोई गिला है खुद से , खुश हूँ मैं अपने ग़मों के साथ क्योंकि खाली नहीं मैं आखिर किस्मत से मुझे कुछ तो मिला है।
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